लालची व्यापारी
अकबर के राज्य मैं एक बर्तनों का व्यापारी था वह बहुत ही बेईमान था। बादशाह उसकी शिकायतें सुनकर परेशान हो चुके थे। बादशाह ने बीरबल से कहा कि तुम शीघ्र पता लगाओ क्या वास्तव में व्यापारी ठगी कर रहा है।
मामले की छानबीन करने पर बीरबल को पता चला कि वह व्यापारी वास्तव में बेईमान है। बीरबल ने उसे सबक सिखाने का निश्चय कर लिया। एक दिन बीरबल व्यापारिक पास गया और तीन दिन के लिए दो पतीले किराए पर ले।
आया जब बीरबल पतीले लौटाने गया तो एक छोटा पतीला और अपने साथ ले गया। तीनों पतीले व्यापारी को देते हुए कहने लगा जनाब तुम्हारे दोनों पतीले एक छोटा पतीला को जन्म दिया है।
‘इसलिए या तुम्हारा है ‘आप भी रख लीजिए व्यापारी लालची था। उसने खुश होकर तीनों पतीले रख लिए।
कुछ दिन बाद में व्यापारी पास जाकर बीरबल एक बड़ा पतीले किराए पर ले। बीरबल दो दिन बाद व्यापारी के पास खाली हाथ चला गया खाली हाथ देखकर व्यापारी बोला है।

“पतीले कहां है? “
जनाब आप के पतीले की मृत्यु हो गए। बीरबल ने कहा।
“क्या कह रहे हो ?पतीला कभी मरता है ? व्यापारी बोला।
बड़े ही शांत स्वभाव से बीरबल बोला जब बड़ा पतीला छोटा पतीला पैदा कर सकता है तो पतीला मर क्यों नहीं सकता।
व्यापारी बीरबल की सारी बात समझ गया उसने वादा किया कि भविष्य में कभी बेईमान नहीं करेगा इसके बाद व्यापारी ने बेईमान करना छोड़ दिया अब बादशाह के पास पारी की शिकायतें भी बंद हो गई एक बार फिर बादशाह ने बीरबल की चतुराई और बुद्धिमानी बहुत प्रशंसा की।
तो दोस्तों, इस कहानी से हमे क्या सिख मिलती है? .
हमें बेईमानी नहीं करना चाहिए इसका फल बुरा होता है और हमे बीरबल की तरह चतुराई और बुद्धिमानी होना चाहिए ।
हार की जीत

गांव के बाहर के मंदिर मैं बाबा भारती नाम के एक साधु रहते थे। उनके पास एक बढ़िया घोड़ा था जिसे वे सुल्तान कहते थे वैसा घोड़ा आसपास के किसी गांव में ना था बाबा भारती अपने आप से सुल्तान को दाना खिलाते थे जब तक शाम को बाबा सुल्तान पर आठ से दस मिल का चक्कर ना लगा लेते उन्हें चैन न आता।
इस इलाके में खड़क सिंह नाम का एक डाकू था लोग उसके नाम से कांपते थे। खड़क सिंह ने अभी सुल्तान के बारे में सुना है एक दिन वह बाबा भारती के पास पहुंचा बाबा ने पूछा कहो खड़क सिंह क्या हाल है खड़क सिंह ने उत्तर दिया मैं बिल्कुल ठीक हूं।
बाबा ने पूछा कहो मेरे पास कैसे आए खड़क सिंह ने कहा आपके घोड़े सुल्तान की बहुत प्रशंसा सुनी थी इसलिए देखने चला आया उसका चाल तुम्हारा मन मोह लेगी कहते हैं देखने में भी बड़ा सुंदर है।
बाबा भारती उसे अस्तबल में ले गए बाबा ने घोड़ा दिखाया घमंड से खड़क सिंह घोड़ा देखा चेहरे से
खड़क सिंह ने घोड़े देख आश्चर्य से ऐसा बांका घोड़ा उसने कभी ना देखा था बाल को किसी अधीरता से बोला बाबाजी इसकी चाल ने देखा तो क्या बाबा जी भी मनुष्य ही थे।
“अपनी वस्तु की प्रशंसा ” दूसरे के मुख से सुनने के लिए उनका ह्रदय अधीर हो उठा घोड़ा खोलकर बाहर ले गए घोड़ा वायु वेग से उड़ने लगा उसकी चाल देख कर खड़क सिंह के हृदय पर सांप लोड गया जाते-जाते उसने कहा बाबा जी मैं यह घोड़ा आपके पास रहने ना दूंगा।
बाबा भारतीय डर गए अब उन्हें रात को नींद ना आती सारी रात अस्तबल की रखवाली मैं कटने लगी कई माह बीत गए और वह ना आया यहां तक कि बाबा भारती कुछ आ सावधान हो गए संध्या का समय था बाबा सुलतान पर सवार होकर घूमने जा रहे थे।
घोड़ा को देख देख कर भी फूले न समाते थे संध्या का समय था सहरसा एक और से आवाज आई वह बाबा इस कगले को भी सुनते जाना।
आवाज में करुणा थी बाबा ने घोड़ा को रोक लिया देखा एक अपाहिज वृक्ष की छाया में पड़ा कराह रहा है हाथ जोड़कर उसने कहा बाबा मुझे पर दया करो रामा वाला यहां से 30 मील दूर है।
मुझे वहां जाना है घोड़ा पर चढ़ा लो परमात्मा भला करेगा।
बाबा भारती ने घोड़े पर अपाहिज को सवार किया और स्वयं उसकी लगाम पकड़ कर धीरे धीरे चलने लगे।
सहरसा उन्हें एक झटका सा लगा और लगाम हाथ से छूट गए उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब. उन्हें देखा कि आप अपाहिज घोड़े पर पीठ पर तन कर बैठा है और घोड़े को दौड़ा लिया जा रहा है।

बाबा भारती थोड़ी देर देखते रहे फिर चिल्लाकर बोले जरा ठहर जाओ खड़क सिंह खड़क सिंह ने घोडा रोक दिया और बाबा से कहा बाबा जी मैं घोड़ा ना दूंगा।
बाबा ने कहा भाई मुझे घोड़ा ना चाहिए या तुम्हारा है बस तुम मेरी एक बात सुनते जाओ मेरी प्रार्थना है कि इस घटना का किसी के सामने जिगर ना करना।
खड़क सिंह का मुंह आश्चर्य से खुला रहा गया ने पूछा बाबा जी इसमें आपको क्या डर है सुनकर बाबा भारती ने उत्तर दिया लोगों को यह दिल घटना का पता लग गया तो , ‘वह किसी गरीब पर विश्वास ना करेंगे।
क्या कहते कहते उन्होंने सुल्तान की ओर से मुंह मोड़ लिया बाबा भारती चले गए तुरंत उसने शब्द खड़क सिंह के कानों में गूंज रहे थे ,
रात के अंधेरे में खड़क सिंह अस्तबल में पहुंचा फाटक खुला था उसने चुपचाप घोड़े को अस्तबल में बांधा और चला गया सुबह स्नान करने के बाद बाबा भारती के पास रोज की तरह अस्तबल की ओर बढ़ गए.
फाटक पर पहुंच कर उन्हें अपनी भूल का पता चला वह वहीं रुक गए सुल्तान ने बाबा के पैरों की आवाज पहचान लिया और वह हीनहींना आया वह खुशी से दौड़ते हुए अंदर घुसे और घोड़े के गले से लिपट गए फिर वह संतोष से बोले आप कोई गरीब की सहायता से मुँह न मोड़ेगा।